I bow to my Teacher: The Guru Poornima



I bow to my Teacher
Guru Poornima




Guru is the Hindi word for the Teacher. In Hindi Guru is a combination of two Sanskrit words, namely, the gu and the ru that verbatim translates into the English words ignorance and destroyer, respectively. So guru is the one who destroys ignorance from the minds of his sishyas (शिष्य) or students.

The full moon day of the month of Asadha is the birthday of the great sage Vyasadeva. He is the author of the Mahabharata, the Shrimad Bhagavad Gita, and Astadasha (Eighteen) PuranasThe Mahabharata itself has been written in 100,000 slokas and is the most voluminous book in the world. This day is known as the Vyasa Poornima, the Guru Poornima, and Asadha Poornima

On the auspicious day of the Guru Poornima, we need to take shelter under the noble souls.


गुरु पूर्णिमा

Guru Brahma Guru Vishnu Guru Deva Maheswara
Guru Sakshat Param Brahma Tasmai Shree Gurave Namah



गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः
(गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम ।)


धर्मज्ञो धर्मकर्ता सदा धर्मपरायणः तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते
(धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं ।)

निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं निष्पापपथे प्रवर्तते गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः गुरु र्निगद्यते
(जो दूसरों को प्रमाद करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते से चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध करते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं ।)

नीचं शय्यासनं चास्य सर्वदा गुरुसंनिधौ गुरोस्तु चक्षुर्विषये यथेष्टासनो भवेत्
(गुरु के पास हमेशा उनसे छोटे आसन पे बैठना चाहिए गुरु आते हुए दिखे, तब अपनी मनमानी से नहीं बैठना चाहिए ।)


किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम्
(बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है ।)

प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः
(प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवालेये सब गुरु समान है ।)

गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते
('गु'कार याने अंधकार, और 'रु'कार याने तेज; जो अंधकार का (ज्ञान का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वही गुरु कहा जाता है ।)

शरीरं चैव वाचं बुद्धिन्द्रिय मनांसि नियम्य प्राञ्जलिः तिष्ठेत् वीक्षमाणो गुरोर्मुखम्
(शरीर, वाणी, बुद्धि, इंद्रिय और मन को संयम में रखकर, हाथ जोडकर गुरु के सन्मुख देखना चाहिए ।)


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